363 IPC in Hindi : Punishment under Section 363

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भारतीय दंड संहिता (363 IPC in Hindi) IPC की धारा 363 का उद्देश्य किसी व्यक्ति के अपहरण को दंडनीय अपराध बनाना है। इस धारा के तहत, किसी भी व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध किसी भी प्रकार से अपहरण करना या उसका बलपूर्वक स्थानांतरण करना अपराध माना जाता है। यह धारा विशेष रूप से बच्चों के अपहरण और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है। धारा 363 के तहत अपराध सिद्ध होने पर कठोर सजा का प्रावधान है, जिसमें कारावास और आर्थिक दंड शामिल हो सकते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य समाज में सुरक्षित वातावरण बनाए रखना और अपराधियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करना है।

363 Ipc In Hindi

Definition and Scope (परिभाषा और क्षेत्र)

परिभाषा (Definition):

भारतीय दंड संहिता (363 IPC in Hindi) की धारा 363 के अनुसार, “जो कोई भी व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध या किसी नाबालिग (16 वर्ष की आयु से कम उम्र की लड़की या 18 वर्ष की आयु से कम उम्र के लड़के) को उसके कानूनी अभिभावक की सहमति के बिना अपहरण करता है, उसे इस धारा के तहत दंडित किया जाएगा।” इस धारा के तहत अपराध को निम्नलिखित स्थितियों में परिभाषित किया गया है:

  1. अपहरण: किसी व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध स्थानांतरित करना।
  2. नाबालिग का अपहरण: कानूनी अभिभावक की सहमति के बिना नाबालिग को अपहरण करना।

क्षेत्र (Scope):

धारा 363 का क्षेत्र व्यापक है और इसमें निम्नलिखित पहलू शामिल हैं:

  1. बाल अपहरण: बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए यह धारा महत्वपूर्ण है। इसमें बच्चों के अपहरण के मामलों को कवर किया जाता है, चाहे वे जबरदस्ती हो या धोखे से।
  2. वयस्कों का अपहरण: इसमें ऐसे वयस्कों का अपहरण भी शामिल है, जिनकी इच्छा के विरुद्ध उनका स्थानांतरण किया गया हो।
  3. सख्त सजा: धारा (363 IPC in Hindi) के तहत अपराध सिद्ध होने पर कठोर सजा का प्रावधान है, जिसमें कारावास और आर्थिक दंड शामिल हो सकते हैं।
  4. अंतर्राज्यीय और अंतर्राष्ट्रीय अपहरण: यह धारा भारत के भीतर और बाहर दोनों तरह के अपहरण के मामलों पर लागू होती है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी भी प्रकार का अपहरण दंडनीय हो।
  5. निवारक उपाय: समाज में सुरक्षित वातावरण बनाए रखने और अपराधियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने के उद्देश्य से, यह धारा निवारक उपायों के रूप में कार्य करती है।

Elements of the Offense (अपराध के तत्व) of 363 IPC in Hindi

1. व्यक्ति का स्थानांतरण (Taking away the person):

  • अपराधी को पीड़ित व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध ले जाना चाहिए। इसमें शारीरिक बल का प्रयोग, धोखा, या किसी भी प्रकार की चालाकी शामिल हो सकती है।

2. नाबालिग का अपहरण (Kidnapping of a minor):

  • यदि पीड़ित व्यक्ति नाबालिग है (लड़की के लिए 16 वर्ष से कम और लड़के के लिए 18 वर्ष से कम), तो यह अपराध माना जाएगा, भले ही स्थानांतरण उसकी सहमति से हुआ हो, यदि यह उसके कानूनी अभिभावक की सहमति के बिना हुआ है।

3. कानूनी अभिभावक की सहमति (Lack of legal guardian’s consent):

  • नाबालिग के मामले में, यह आवश्यक है कि अपहरण कानूनी अभिभावक की सहमति के बिना किया गया हो। यदि कानूनी अभिभावक की सहमति से नाबालिग को स्थानांतरित किया जाता है, तो यह धारा लागू नहीं होगी।

4. पीड़ित की इच्छा के विरुद्ध (Against the will of the victim):

  • यदि पीड़ित वयस्क है, तो उसका स्थानांतरण उसकी इच्छा के विरुद्ध होना चाहिए। इसका मतलब है कि पीड़ित को बलपूर्वक, धोखे से, या किसी अन्य प्रकार के दबाव का उपयोग करके ले जाया गया हो।

5. स्थानांतरण का उद्देश्य (Purpose of taking away):

  • अपराधी के उद्देश्य से यह भी स्थापित किया जा सकता है कि अपहरण का उद्देश्य किसी प्रकार का नुकसान पहुंचाना, फिरौती मांगना, या पीड़ित को अवैध रूप से बंधक बनाना था।

6. नाबालिग की उम्र का प्रमाण (Proof of minor’s age):

  • यदि अपहरण का मामला नाबालिग से संबंधित है, तो नाबालिग की उम्र का प्रमाण प्रस्तुत करना आवश्यक होता है। यह स्कूल प्रमाणपत्र, जन्म प्रमाणपत्र या अन्य कानूनी दस्तावेजों के माध्यम से साबित किया जा सकता है।

Punishment under Section 363 (धारा 363 के तहत सजा) of 363 IPC in Hindi

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 363 के तहत अपहरण का अपराध सिद्ध होने पर निम्नलिखित सजा का प्रावधान है:

1. कारावास (Imprisonment):

  • धारा (363 IPC in Hindi) के तहत अपराध सिद्ध होने पर अपराधी को सात वर्ष तक की कारावास की सजा हो सकती है। यह सजा साधारण या कठोर कारावास हो सकती है, जिसे न्यायालय अपराध की गंभीरता और परिस्थिति के आधार पर तय करता है।

2. आर्थिक दंड (Fine):

कारावास के साथ-साथ, धारा 363 के तहत अपराधी पर आर्थिक दंड भी लगाया जा सकता है। दंड की राशि न्यायालय द्वारा निर्धारित की जाती है और यह अपराध की गंभीरता और परिस्थितियों पर निर्भर करती है।

सजा का उद्देश्य (Purpose of Punishment)

1. निवारण (Deterrence):

सख्त सजा का उद्देश्य समाज में अपहरण के मामलों को कम करना और लोगों में भय पैदा करना है ताकि वे इस प्रकार के अपराध करने से बचें।

2. न्याय (Justice):

पीड़ित और उसके परिवार को न्याय दिलाना। सजा यह सुनिश्चित करती है कि अपराधी को उसके कृत्यों के लिए दंडित किया जाए और पीड़ित को न्याय मिले।

3. सुधार (Reformation):

सजा का एक उद्देश्य अपराधी को सुधारना भी है ताकि वह भविष्य में अपराध करने से बचे और समाज का एक जिम्मेदार सदस्य बने।

4. सुरक्षा (Protection):

सजा यह सुनिश्चित करती है कि अपराधी को समाज से हटाया जाए, जिससे समाज के अन्य लोग सुरक्षित रहें।

न्यायालय की भूमिका (Role of the Court)

1. साक्ष्य का मूल्यांकन (Evaluation of Evidence):

न्यायालय साक्ष्यों का मूल्यांकन करता है और यह सुनिश्चित करता है कि अपराधी ने धारा 363 के तहत अपराध किया है।

2. परिस्थितियों का विचार (Consideration of Circumstances):

न्यायालय अपराध की परिस्थितियों, पीड़ित की स्थिति, और अपराधी के इरादों का विचार करता है और इसके आधार पर सजा निर्धारित करता है।

3. न्यायिक विवेक (Judicial Discretion):

न्यायालय को न्यायिक विवेक का प्रयोग करते हुए उचित सजा निर्धारित करने का अधिकार है, जो अपराध की गंभीरता और संबंधित परिस्थितियों पर आधारित होता है।

Legal Provisions and Case Laws (कानूनी प्रावधान और महत्वपूर्ण मामले) of 363 IPC in Hindi

कानूनी प्रावधान (Legal Provisions)

भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code), 1860:

1. धारा 363 (Section 363):

  • यह धारा अपहरण को परिभाषित करती है और इसके तहत सजा का प्रावधान है। यह अपहरण को दंडनीय अपराध मानती है और अपराध सिद्ध होने पर सात वर्ष तक की कारावास और आर्थिक दंड का प्रावधान करती है।

2.आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code), 1973:

  • यह संहिता गिरफ्तारी, जांच और अभियोजन की प्रक्रियाओं को निर्दिष्ट करती है, जो धारा 363 के तहत अपराधों के लिए लागू होती है।

3. बाल संरक्षण अधिनियम (Protection of Children from Sexual Offences Act), 2012:

  • यदि अपहरण का मामला यौन उत्पीड़न से संबंधित है, तो इस अधिनियम के प्रावधान भी लागू हो सकते हैं।

महत्वपूर्ण मामले (Important Case Laws)

1. वरिंदर कुमार बनाम पंजाब राज्य (Varinder Kumar vs State of Punjab):

  • इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने अपहरण के अपराध में दोषी ठहराने के लिए आवश्यक साक्ष्य और प्रमाणों पर जोर दिया। यह मामला धारा (363 IPC in Hindi)के तहत सजा के निर्धारण में महत्वपूर्ण है।

2. सत्यव्रत बैनर्जी बनाम बंगाल राज्य (Satyavrata Banerjee vs State of West Bengal):

  • इस मामले में, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि नाबालिग के अपहरण में कानूनी अभिभावक की सहमति का महत्व है और अपहरणकर्ता की मंशा का मूल्यांकन कैसे किया जाना चाहिए।

3. जगदीश प्रसाद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (Jagdish Prasad vs State of Uttar Pradesh):

  • इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने अपहरण के मामले में कानूनी और तकनीकी मुद्दों पर चर्चा की और धारा 363 के तहत सजा के मानदंड निर्धारित किए।

4. शिव कुमार बनाम हरियाणा राज्य (Shiv Kumar vs State of Haryana):

  • इस मामले में, कोर्ट ने नाबालिग के अपहरण के मामले में अपहरणकर्ता के खिलाफ साक्ष्यों की मजबूती पर विचार किया और सजा का निर्धारण किया।

कानून का उद्देश्य (Purpose of the Law)

1. सुरक्षा:

  • धारा 363 का मुख्य उद्देश्य समाज में सुरक्षा सुनिश्चित करना है, विशेषकर बच्चों और कमजोर व्यक्तियों के लिए।

2. निवारण:

कठोर सजा का प्रावधान अपहरण के मामलों को निवारित करने का उद्देश्य रखता है।

3. न्याय:

पीड़ित और उनके परिवारों को न्याय दिलाना और अपराधियों को उनके कृत्यों के लिए दंडित करना।

Kidnapping vs. Abduction (अपहरण बनाम अपहरण) of 363 IPC in Hindi

भारतीय दंड संहिता (IPC) में ‘अपहरण’ और ‘अपहरण’ (Abduction) दोनों अलग-अलग अपराध हैं, हालांकि दोनों में किसी व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध ले जाने का तत्व होता है। इन दोनों के बीच के अंतर को समझना आवश्यक है।

अपहरण (Kidnapping)

परिभाषा (Definition):

  • अपहरण भारतीय दंड संहिता की धारा 359 से 361 के अंतर्गत आता है। इसमें दो प्रकार के अपहरण शामिल हैं:
  • अपहरण भारतीय सीमा के भीतर (Kidnapping from India): धारा 360 के तहत, किसी व्यक्ति को भारत की सीमा से बाहर ले जाना।
  • नाबालिगों का अपहरण (Kidnapping from Lawful Guardianship): धारा 361 के तहत, किसी नाबालिग (लड़की के लिए 16 वर्ष से कम और लड़के के लिए 18 वर्ष से कम) को उसके कानूनी अभिभावक की सहमति के बिना ले जाना।

तत्व (Elements):

  • व्यक्ति का ले जाना।
  • नाबालिग या व्यक्ति को भारत की सीमा से बाहर ले जाना।
  • कानूनी अभिभावक की सहमति के बिना।

सजा (Punishment):

  • धारा 363 के तहत, अपहरण का दोष सिद्ध होने पर सात वर्ष तक की कारावास और आर्थिक दंड का प्रावधान है।

अपहरण (Abduction)

परिभाषा (Definition):

  • अपहरण भारतीय दंड संहिता की धारा 362 के अंतर्गत आता है। इसमें किसी व्यक्ति को बलपूर्वक, धोखे से, या अन्य किसी प्रकार से उसकी इच्छा के विरुद्ध स्थानांतरित करना शामिल है।

तत्व (Elements):

  • व्यक्ति को बलपूर्वक या धोखे से ले जाना।
  • पीड़ित की इच्छा के विरुद्ध।
  • किसी अवैध उद्देश्य के लिए।

उद्देश्य (Purpose):

  • अपहरण का उद्देश्य आमतौर पर अवैध होता है, जैसे फिरौती मांगना, हत्या करना, या किसी अन्य अपराध को अंजाम देना।

सजा (Punishment):

  • अपहरण के लिए सजा उस विशेष अपराध पर निर्भर करती है, जिसके लिए अपहरण किया गया हो। उदाहरण के लिए, अगर अपहरण हत्या के इरादे से किया गया हो, तो धारा 364 के तहत सजा और कठोर हो सकती है।

मुख्य अंतर (Key Differences)

उम्र का मानदंड (Age Criterion):

  • अपहरण में नाबालिगों को शामिल किया जाता है, जबकि अपहरण किसी भी उम्र के व्यक्ति के लिए हो सकता है।

सहमति (Consent):

  • अपहरण में नाबालिग की सहमति का महत्व नहीं होता, जबकि अपहरण में पीड़ित की सहमति महत्वपूर्ण होती है।

उद्देश्य (Purpose):

  • अपहरण का उद्देश्य नाबालिग की सुरक्षा सुनिश्चित करना होता है, जबकि अपहरण का उद्देश्य आमतौर पर अवैध और आपराधिक होता है।

कानूनी अभिभावक (Legal Guardian):

  • अपहरण में कानूनी अभिभावक की सहमति का अभाव महत्वपूर्ण होता है, जबकि अपहरण में ऐसा कोई प्रावधान नहीं होता।

प्रावधान और सजा (Provisions and Punishment):

  • अपहरण के लिए धारा 363 में सजा का प्रावधान है, जबकि अपहरण के लिए सजा संबंधित अपराध की गंभीरता पर निर्भर करती है।

Rights of the Accused (अभियुक्त के अधिकार) of 363 IPC in Hindi

अभियुक्त के अधिकार (Rights of the Accused)

भारतीय संविधान और भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code, 1973) के तहत, अभियुक्त को कई अधिकार प्रदान किए गए हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि न्यायिक प्रक्रिया निष्पक्ष और न्यायपूर्ण हो। यहां अभियुक्त के कुछ महत्वपूर्ण अधिकारों का विवरण दिया गया है:

1. संवैधानिक अधिकार (Constitutional Rights):

  • अनुच्छेद 20 (Article 20): यह अनुच्छेद अभियुक्त के खिलाफ रेट्रोस्पेक्टिव (पूर्व प्रभावी) कानूनों, दोहरी सजा (Double Jeopardy), और आत्म-अभिकथन (Self-Incrimination) से सुरक्षा प्रदान करता है।
  • अनुच्छेद 21 (Article 21): जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार, जिसके तहत अभियुक्त को कानून की प्रक्रिया के अनुसार जीने का अधिकार है।
  • अनुच्छेद 22 (Article 22): गिरफ्तारी के समय अभियुक्त को उसके गिरफ्तार होने के कारणों के बारे में जानकारी देने और वकील से परामर्श का अधिकार प्राप्त है।

2. कानूनी प्रक्रिया में अधिकार (Rights under Criminal Procedure Code):

  • गिरफ्तारी का कारण (Right to be Informed of Grounds of Arrest): धारा 50 के तहत, अभियुक्त को उसकी गिरफ्तारी के कारणों की जानकारी देने का अधिकार है।
  • वकील से परामर्श (Right to Consult a Lawyer): धारा 303 के तहत, अभियुक्त को अपनी पसंद के वकील से परामर्श और प्रतिनिधित्व का अधिकार है।
  • उचित समय में न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने का अधिकार (Right to be Produced before a Magistrate within 24 Hours): धारा 57 के तहत, गिरफ्तारी के बाद 24 घंटे के भीतर अभियुक्त को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए।

3. मुकदमे के दौरान अधिकार (Rights during Trial):

  • सुनवाई का अधिकार (Right to Fair Trial): अभियुक्त को निष्पक्ष और सार्वजनिक सुनवाई का अधिकार है, जहां उसके मामले को निष्पक्ष न्यायाधीश द्वारा सुना जाएगा।
  • गवाहों का सामना (Right to Cross-Examine Witnesses): अभियुक्त को गवाहों से जिरह करने और अपने बचाव के लिए साक्ष्य प्रस्तुत करने का अधिकार है।
  • मुकदमे के दौरान मौन रहने का अधिकार (Right to Remain Silent): अभियुक्त को मुकदमे के दौरान मौन रहने का अधिकार है और उसे आत्म-अभिकथन के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।

4. जमानत का अधिकार (Right to Bail):

  • अभियुक्त को जमानत के लिए आवेदन करने का अधिकार है। धारा 436, 437, और 439 जमानत के प्रावधानों को निर्दिष्ट करती हैं।

5. मुक्ति के लिए अधिकार (Right to Speedy Trial):

  • अभियुक्त को तेजी से और निष्पक्ष तरीके से मुकदमे का अधिकार है ताकि न्याय में देरी न हो।

6. अपील का अधिकार (Right to Appeal):

  • अभियुक्त को अपील करने का अधिकार है यदि वह निम्न न्यायालय के निर्णय से असहमत है।

7. कानूनी सहायता का अधिकार (Right to Legal Aid):

  • आर्थिक रूप से कमजोर अभियुक्तों को मुफ्त कानूनी सहायता प्राप्त करने का अधिकार है, ताकि वे उचित तरीके से अपना बचाव कर सकें।

8. पुलिस प्रताड़ना से सुरक्षा (Protection from Police Harassment):

  • गिरफ्तारी और हिरासत के दौरान अभियुक्त को पुलिस प्रताड़ना और अत्याचार से सुरक्षा प्राप्त है।

Role of Police and Investigation (पुलिस की भूमिका और जांच) of 363 IPC in Hindi

1. प्राथमिक संपर्क:

  • पुलिस अपहरण और अपहरण की घटनाओं को प्राथमिक रूप से दर्ज करती है और पीड़ित या उनके परिजनों से संपर्क स्थापित करती है।

2. अभियांत्रिकी प्रशासन:

  • पुलिस अभियांत्रिकी विशेषज्ञों को घटना स्थल पर भेजती है जो अपहरण या अपहरण की जांच करते हैं।

3. साक्षात्कार और गवाहों का दर्जन:

  • पुलिस गवाहों से साक्षात्कार करती है और गवाहों की बयान को दर्ज करती है जो मामले में शामिल हो सकते हैं।

4. संदिग्ध व्यक्तियों की जांच:

  • पुलिस अपहरण या अपहरण में संदिग्ध व्यक्तियों की जांच करती है और उन्हें गिरफ्तार कर सकती है।

5. मानवाधिकार का पालन:

  • पुलिस गिरफ्तारी और जांच की प्रक्रिया में मानवाधिकार के प्रति सावधानी बरतती है।

6. सामाजिक और मानसिक समर्थन:

  • पुलिस पीड़ित परिवारों को सामाजिक और मानसिक समर्थन प्रदान करती है ताकि वे मामले के दौरान सहायता प्राप्त कर सकें।

7. न्यायिक प्रक्रिया का समर्थन:

  • पुलिस अपहरण और अपहरण मामलों में न्यायिक प्रक्रिया में समर्थन प्रदान करती है और अपराधियों को न्याय मिलने में सहायता करती है।

8. अपाराधिक निरीक्षण:

  • पुलिस अपहरण या अपहरण के मामले में अपाराधिक निरीक्षण करती है और अपराधियों को बरामद करती है ताकि न्यायिक प्रक्रिया आगे बढ़ सके।

Preventive Measures and Awareness (निवारक उपाय और जागरूकता) of 363 IPC in Hindi

1. जागरूकता कार्यक्रम:

  • समुदाय में अपहरण और अपहरण के बारे में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करना।

2. बच्चों को सुरक्षित रखना:

3. स्कूल और समुदाय में सुरक्षा प्रोग्राम:

  • स्कूल और समुदायों में सुरक्षा प्रोग्राम अनुसंधान करना और लागू करना।

4. अतिरिक्त सुरक्षा की व्यवस्था:

  • परिवारों को अतिरिक्त सुरक्षा की व्यवस्था करने के लिए प्रोत्साहित करना, जैसे कि सुरक्षा गार्ड या CCTV कैमरे इत्यादि।

5. खतरे की घटना के लिए संकेत चिह्न:

  • बच्चों और युवाओं को बताना कि अपाराधी के संकेत चिह्न जैसे अजनबी से सावधान रहना, उत्तेजना में रहना, और अनचाहे स्थितियों से बचने के लिए क्या करें।

6. आदेशपालन की महत्वपूर्णता:

  • न्यायिक और कानूनी आदेशों का सम्मान करना, जैसे कि बच्चों की कानूनी संरक्षा के लिए उचित आदेशों का पालन करना।

7. मामले की त्वरित रिपोर्टिंग:

  • अपहरण या अपहरण के मामले को त्वरित रूप से पुलिस को रिपोर्ट करना और उचित संरचना में मामले की जांच करने के लिए सहायता मांगना।

8. सामुदायिक सहयोग:

  • सामुदायिक स्तर पर सहयोग करना, जैसे कि मार्गदर्शन केंद्र, युवा संगठन या महिला समूहों के माध्यम से अपहरण और अपहरण के खिलाफ जागरूकता फैलाना।

Freqently Asked Questions (FAQs)

Q1: अपहरण और अपहरण में अंतर क्या है?

Ans. अपहरण एक अपराध है जिसमें किसी को बलपूर्वक ले जाया जाता है, जबकि अपहरण में व्यक्ति को धोखे से ले जाया जाता है।

Q2: अपहरण के लिए सजा क्या होती है?

Ans. भारतीय दंड संहिता के अनुसार, अपहरण के लिए धारा 363 में सात वर्ष की कारावासी सजा होती है।

Q3: अपहरण से कैसे बचा जा सकता है?

Ans. बच्चों और युवाओं को सुरक्षित रखने के लिए अपनी व्यक्तिगत जानकारी को साझा न करना, अजनबी से सावधान रहना और जरूरी स्थितियों में सहायता मांगना।

Q4: अपहरण की रिपोर्ट कैसे की जाए?

Ans. अपहरण या अपहरण की संदेहास्पद घटना को त्वरित रूप से नजदीकी पुलिस थाने में रिपोर्ट करें।

Q5: अपहरण के प्रति सामुदायिक जागरूकता क्यों जरूरी है?

Ans. सामुदायिक जागरूकता से लोगों को अपहरण और अपहरण से बचाव के तरीके समझाए जा सकते हैं और साथ ही अपाराधों को रोकने में सहायता मिल सकती है।

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