NI Act in Hindi : History, Cheque Bounce, Presumption in Favor of Holder

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“NI Act in Hindi” का पूरा नाम है “Negotiable Instruments Act,” जिसे हिंदी में “संवहनीय उपकरण अधिनियम” कहा जाता है। यह कानून भारतीय वित्तीय लेनदेन की एक महत्वपूर्ण धारा है, जो चेक, प्रॉमिसरी नोट्स और बिल्स ऑफ एक्सचेंज जैसे संवहनीय उपकरणों के उपयोग और नियमों को नियंत्रित करता है। यह अधिनियम 1881 में पारित हुआ था और इसका मुख्य उद्देश्य व्यापार और लेन-देन में पारदर्शिता और भरोसेमंदी को सुनिश्चित करना है।

NI Act का महत्व

इस बात में है कि यह वित्तीय लेन-देन को सुव्यवस्थित और कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है। यह अधिनियम उन मामलों में कानूनी उपाय प्रदान करता है जहां चेक बाउंस हो जाते हैं या अन्य संवहनीय उपकरणों का दुरुपयोग होता है। इसके द्वारा, लेन-देन में शामिल पक्षों को उनके अधिकार और कर्तव्यों की जानकारी मिलती है, जिससे आर्थिक विवादों का समाधान कानूनी तरीके से किया जा सकता है। NI Act के तहत, विभिन्न दंड और सजा के प्रावधान भी हैं जो दोषियों को सजा देने का काम करते हैं, जिससे व्यापारिक लेन-देन की स्थिरता बनी रहती है।

History of the NI Act in Hindi

 

NI Act का इतिहास (History of the NI Act)

1. Origins and Evolution (उत्पत्ति और विकास)

  1. अधिनियम का प्रारंभ: NI Act का प्रारूप 1881 में ब्रिटिश राज के दौरान भारतीय कानून व्यवस्था में शामिल किया गया। यह अधिनियम ब्रिटिश कानूनों पर आधारित था, जिनका उद्देश्य व्यापारिक लेन-देन को सुगम बनाना था।
  2. वाणिज्यिक लेन-देन का संवर्धन: इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य व्यापारिक लेन-देन के लिए एक स्पष्ट और स्थिर कानूनी ढांचा प्रदान करना था। इससे व्यावसायिक लेन-देन को अधिक पारदर्शी और सुरक्षित बनाया जा सका।
  3. प्रारंभिक रूप में सीमित दायरा: शुरू में, NI Act केवल कुछ निश्चित प्रकार के वित्तीय दस्तावेजों को ही कवर करता था, जैसे कि प्रॉमिसरी नोट्स, बिल्स ऑफ एक्सचेंज, और चेक्स।
  4. विकासात्मक परिवर्तनों का सामना: समय के साथ, भारतीय अर्थव्यवस्था और वित्तीय प्रणाली के विकास के साथ NI Act को भी संशोधित किया गया। इसने नए प्रकार के वित्तीय दस्तावेज़ और लेन-देन को शामिल किया।
  5. आधुनिकरण: 20वीं सदी के अंत और 21वीं सदी की शुरुआत में NI Act में कई आधुनिक संशोधन किए गए। ये संशोधन डिजिटल बैंकिंग, इलेक्ट्रॉनिक चेक्स, और अन्य आधुनिक वित्तीय उपकरणों को कवर करने के लिए थे।

2. Key Amendments (मुख्य संशोधन)

  1. 1975 का संशोधन: 1975 में NI Act में पहला बड़ा संशोधन किया गया। इस संशोधन ने चेक बाउंस के मामलों में दंडात्मक प्रावधान जोड़े और कानूनी प्रक्रिया को अधिक सख्त बनाया।
  2. 1988 का संशोधन: इस संशोधन ने लम्बे समय से प्रचलित चेक बाउंस मामलों की प्रक्रिया को सरल किया और इन मामलों में दंड की मात्रा बढ़ाई। यह संशोधन विशेष रूप से चेक बाउंस के मामलों में सजा के प्रावधानों को सख्त बनाता है।
  3. 1999 का संशोधन: 1999 में, NI Act में इलेक्ट्रॉनिक चेक और अन्य डिजिटल वित्तीय उपकरणों के लिए प्रावधान जोड़े गए। इसने आधुनिक वित्तीय लेन-देन को मान्यता दी और कानूनी मान्यता प्रदान की।
  4. 2002 का संशोधन: 2002 में किए गए संशोधन ने चेक बाउंस मामलों में तुरंत निपटारे के लिए विशेष प्रावधान जोड़े। यह संशोधन लेन-देन की समयसीमा को घटाने और त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के उद्देश्य से किया गया।
  5. 2005 का संशोधन: इस संशोधन ने NI Act के कुछ प्रावधानों को पुनर्निर्धारित किया और नए वित्तीय उपकरणों को शामिल किया। इसने कानूनी प्रक्रिया को अधिक सुगम और समकालीन बनाया।

Definition of NI Act in Hindi

 

NI Act की परिभाषा (Definition of NI Act)

Basic Definitions:

  • Negotiable Instruments (लेन-देन के योग्य उपकरण): NI Act के तहत, एक “Negotiable Instrument” वह दस्तावेज़ होता है जिसे कानूनी तरीके से हस्तांतरित किया जा सकता है और जो भुगतान का दावा करने का अधिकार देता है। इसमें मुख्य रूप से तीन प्रकार के दस्तावेज़ शामिल होते हैं:
  • चेक (Cheque): एक लिखित आदेश जिसे एक बैंक को भुगतान करने के लिए जारी किया जाता है।
  • बिल ऑफ एक्सचेंज (Bill of Exchange): एक व्यापारिक दस्तावेज़ जिसमें एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से एक निर्दिष्ट तिथि पर धन की राशि का भुगतान करने का आदेश देता है।
  • प्रमिसरी नोट (Promissory Note): एक लिखित वचन जिसमें एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को एक निर्दिष्ट राशि का भुगतान करने का वचन देता है।
  • Holder (धारक): वो व्यक्ति जो (NI Act in Hindi) Negotiable Instrument को अपनी अधिकारिता में रखता है और जिसे उस पर निर्दिष्ट राशि प्राप्त करने का अधिकार है।
  • Endorsement (हस्ताक्षर): एक Negotiable Instrument के पीछे किसी अन्य व्यक्ति को स्थानांतरित करने की प्रक्रिया, जिसमें मौजूदा धारक उस दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करता है।

Key Terms:

  1. Drawer (आदेशक): वह व्यक्ति जो चेक या बिल ऑफ एक्सचेंज जारी करता है और भुगतान का आदेश देता है।
  2. Drawee (आदेश प्राप्तकर्ता): वह व्यक्ति या संस्था (जैसे बैंक) जिसे चेक या बिल ऑफ एक्सचेंज के भुगतान के लिए निर्देशित किया जाता है।
  3. Payee (भुगतानकर्ता): वह व्यक्ति या संस्था जिसे चेक या बिल ऑफ एक्सचेंज पर भुगतान प्राप्त करने का अधिकार है।
  4. Protest (विरोध): एक औपचारिक दस्तावेज़ जो यह दर्शाता है कि एक Negotiable Instrument के भुगतान या स्वीकार करने से इनकार किया गया है।
  5. Dishonour (अस्वीकृति): जब कोई Negotiable Instrument (जैसे चेक) भुगतान या स्वीकार करने से इनकार कर दिया जाता है, तो उसे “dishonoured” कहा जाता है।

Section 138: Cheque Bounce in NI Act in Hindi

 

धारा 138: चेक बाउंस (Section 138: Cheque Bounce)

Overview of Section 138:

धारा 138 भारतीय दंड संहिता (IPC) के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो चेक बाउंस के मामलों से संबंधित है। यह धारा उन स्थितियों को नियंत्रित करती है जब एक चेक बाउंस हो जाता है, अर्थात् जब चेक को बैंक द्वारा कारण बताए बिना या किसी अन्य कारण से अस्वीकार कर दिया जाता है। इस धारा के अंतर्गत, चेक बाउंस का मामला दंडनीय अपराध बन जाता है।

Legal Implications:

  1. आवश्यक शर्तें: धारा 138 के तहत चेक बाउंस के मामले में निम्नलिखित शर्तें पूरी होनी चाहिए:
  • चेक जारी करने के लिए पर्याप्त धनराशि खाते में होनी चाहिए।
  • चेक बाउंस होने पर, प्राप्तकर्ता को एक नोटिस जारी करना होता है जिसमें चेक बाउंस की सूचना दी जाती है और भुगतान के लिए 15 दिन का समय दिया जाता है।
  • यदि निर्धारित समय में भुगतान नहीं किया जाता है, तो मामला न्यायालय में दायर किया जा सकता है।

2. दंड और सजा: यदि आरोपी को दोषी ठहराया जाता है, तो उसे एक साल की कैद या जुर्माना (चेक की राशि का दो गुना) या दोनों सजा हो सकती है।

3. अवधि: चेक बाउंस की शिकायत को चेक के बाउंस होने के बाद 30 दिन के भीतर दायर किया जाना चाहिए।

Recent Case Laws:

  1. M/s. Janki Corporation v. M/s. Union of India (2003): इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि चेक बाउंस के मामलों में केवल बाउंस का प्रमाण ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि यह भी साबित करना आवश्यक है कि चेक का भुगतान करने के लिए कोई जानबूझकर विफलता नहीं की गई है।
  2. K.K. Verma v. Union of India (2014): इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 138 के तहत शिकायत को केवल उस समय तक दायर किया जा सकता है जब तक नोटिस की तारीख से 30 दिन की अवधि पूरी न हो जाए।
  3. Sunil Tiwari v. State of Uttar Pradesh (2021): इस मामले में, उच्च न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि चेक बाउंस के मामले में केवल बाउंस की सूचना पर कार्रवाई की जाती है, और यह साबित करना आवश्यक है कि चेक के बाउंस होने के पीछे जानबूझकर की गई कार्रवाई थी।

Section 139: Presumption in Favor of Holder in NI Act in Hindi

 

धारा 139: चेक की वैधता (Section 139: Presumption in Favor of Holder)

What Does This Section Cover?

धारा 139 भारतीय दंड संहिता (IPC) के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो चेक की वैधता और धारक के पक्ष में अनुमानों को निर्दिष्ट करता है। इस धारा के अंतर्गत, एक ऐसा presumption (अनुमान) होता है कि जब एक चेक धारक किसी चेक को प्रस्तुत करता है, तो यह माना जाता है कि चेक वैध है और उसका निर्माण सही ढंग से हुआ है।

  1. Presumption in Favor of Holder: धारा 139 के अनुसार, यह माना जाता है कि जब एक चेक धारक उस चेक को प्रस्तुत करता है, तो चेक की वैधता और उसके भुगतान का अधिकार सही है। यह मान्यता तब तक बनी रहती है जब तक कि प्रतिवादी यह प्रमाणित नहीं कर देता कि चेक का भुगतान नहीं किया गया है या चेक धोखाधड़ी से भरा गया है।
  2. Burden of Proof: चेक के धारक के लिए यह साबित करना अपेक्षित नहीं है कि चेक वैध था और सही कारणों से जारी किया गया था। बल्कि, आरोपी को यह साबित करना होता है कि चेक के भुगतान में कोई अनियमितता है या चेक के साथ कोई धोखाधड़ी की गई है।

Implications for Parties Involved:

  1. धारक के लिए: चेक धारक के पक्ष में यह एक महत्वपूर्ण लाभ होता है, क्योंकि उसे चेक की वैधता और सही निर्माण के संबंध में किसी अतिरिक्त प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती है। जब तक प्रतिवादी इस मान्यता को चुनौती नहीं देता, धारक को अपने पक्ष में विश्वास रहता है कि चेक मान्य है।
  2. आरोपी के लिए: धारा 139 के तहत, आरोपी (जो चेक जारी करता है) पर यह दायित्व होता है कि वह यह साबित करे कि चेक गलत तरीके से जारी किया गया था या उसकी वैधता पर सवाल उठता है। इस धारा के तहत, आरोपी को यह दिखाना होता है कि चेक बाउंस की वजह किसी भी प्रकार की गलतफहमी, धोखाधड़ी, या अन्य वैध कारण से है।
  3. कानूनी प्रक्रिया: चेक के धारक को न्यायालय में यह सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं होती कि चेक वैध था। इसके बजाय, आरोपी को चुनौती देने और प्रासंगिक साक्ष्य प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी होती है।

Section 142: Protocol and Procedure in NI Act in Hindi

 

धारा 142: प्रोटोकॉल और प्रक्रिया (Section 142: Protocol and Procedure)

Procedure for Filing Complaints:

1. Complaints in Court: धारा 142 के तहत, चेक बाउंस के मामलों की शिकायत एक न्यायालय में दायर की जाती है। शिकायत दर्ज करने के लिए निम्नलिखित प्रक्रिया अपनाई जाती है:

  • Written Complaint: शिकायत को लिखित रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जिसमें चेक बाउंस की पूरी जानकारी और संबंधित दस्तावेज़ (जैसे बाउंस चेक, नोटिस की कॉपी, और संबंधित दस्तावेज़) शामिल होते हैं।
  • Supporting Documents: शिकायत के साथ सभी आवश्यक साक्ष्य और दस्तावेज़ संलग्न किए जाते हैं, जो यह साबित करने में मदद करते हैं कि चेक बाउंस हुआ है और नियमानुसार नोटिस दिया गया है।

2. Judicial Inquiry: न्यायालय शिकायत की समीक्षा करता है और यह तय करता है कि मामला सुनवाई योग्य है या नहीं। यदि मामला स्वीकार कर लिया जाता है, तो न्यायालय को आगे की प्रक्रिया और सुनवाई के लिए निर्देशित किया जाता है।

Time Limits and Jurisdiction:

1. Time Limits:

  • Complaint Filing Time Limit: धारा 142 के तहत, चेक बाउंस की शिकायत को चेक के बाउंस होने के 30 दिन के भीतर दायर करना होता है। इस अवधि में, चेक धारक को बाउंस की सूचना प्राप्त होने के बाद 15 दिन के भीतर आरोपी को नोटिस भेजना होता है। यदि आरोपी ने नोटिस के बावजूद भुगतान नहीं किया, तो शिकायत न्यायालय में दायर की जाती है।
  • Complaint Admissibility: यदि शिकायत तय समय सीमा के भीतर दायर नहीं की जाती है, तो न्यायालय उसे स्वीकार नहीं करेगा और शिकायत को खारिज किया जा सकता है।

2. Jurisdiction:

  • Local Jurisdiction: चेक बाउंस के मामलों में न्यायालय की क्षेत्रीय अधिकारिता का निर्धारण चेक बाउंस होने के स्थान, आरोपी के निवास स्थान या व्यापारिक स्थल के आधार पर किया जाता है। सामान्यतः, शिकायत उस क्षेत्रीय न्यायालय में दायर की जाती है जहां चेक बाउंस हुआ था या आरोपी का निवास स्थान है।
  • Jurisdiction Choice: शिकायतकर्ता को यह सुनिश्चित करना होता है कि सही न्यायालय में शिकायत दायर की जाए, जो मामले की परिस्थितियों के अनुसार न्यायिक अधिकारिता रखता हो।

Section 143: Summary Trial in NI Act in Hindi

 

धारा 143: एकतरफा दावे (Section 143: Summary Trial)

Summary Trials under the NI Act:

धारा 143 भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत चेक बाउंस के मामलों के लिए एकतरफा दावे (Summary Trials) की प्रक्रिया को निर्दिष्ट करती है। यह प्रक्रिया निम्नलिखित बिंदुओं को शामिल करती है:

  1. Expedited Procedure: धारा 143 के तहत, चेक बाउंस के मामलों को एकतरफा (Summary) प्रक्रिया के माध्यम से त्वरित तरीके से निपटाया जाता है। इस प्रक्रिया में सामान्य न्यायिक प्रक्रिया की तुलना में कम औपचारिकताएँ होती हैं और मामलों की त्वरित सुनवाई की जाती है।
  2. Simplified Proceedings: एकतरफा दावे की प्रक्रिया में, अदालत मामले की सुनवाई को सरल और त्वरित बनाने के लिए सीमित साक्ष्य और तर्कों के आधार पर निर्णय करती है। यह प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि मामलों का जल्दी निपटारा हो सके और लंबी कानूनी प्रक्रिया से बचा जा सके।

Advantages of Summary Trials:

  1. Quick Resolution: एकतरफा दावे की प्रक्रिया के माध्यम से चेक बाउंस के मामलों का त्वरित निपटारा किया जा सकता है। यह प्रक्रिया लंबी कानूनी प्रक्रिया को समाप्त करने में मदद करती है और न्याय की उपलब्धता को तेज करती है।
  2. Reduced Formalities: इस प्रक्रिया में न्यायिक औपचारिकताएँ कम होती हैं, जिससे अदालत की समय और संसाधनों की बचत होती है। मामलों की सुनवाई सरल और त्वरित होती है, जिससे विवाद जल्दी हल हो जाते हैं।
  3. Cost-Effective: एकतरफा दावे की प्रक्रिया न्यायालयों के लिए कम लागत वाली होती है और इसमें कम खर्चे और समय की आवश्यकता होती है। यह भी शिकायतकर्ता और प्रतिवादी दोनों के लिए कम खर्चीली होती है।
  4. Efficient Use of Resources: एकतरफा दावे की प्रक्रिया न्यायालयों के संसाधनों का कुशलतापूर्वक उपयोग करती है, जिससे अदालतें अधिक मामलों को समय पर निपटाने में सक्षम होती हैं।

Section 145: Evidence in NI Act in Hindi

 

धारा 145: साक्षात्कार (Section 145: Evidence)

Admissibility of Evidence:

धारा 145 के तहत, चेक बाउंस के मामलों में साक्षात्कार (Evidence) से संबंधित प्रावधान निर्दिष्ट किए गए हैं। इस धारा के अंतर्गत, निम्नलिखित बिंदुओं को ध्यान में रखा जाता है:

  1. Documentary Evidence: चेक बाउंस के मामलों में, चेक और बाउंस नोटिस के दस्तावेज़ मुख्य प्रमाण होते हैं। इन दस्तावेज़ों को प्रमाणित रूप में प्रस्तुत करना आवश्यक है ताकि यह साबित किया जा सके कि चेक बाउंस हुआ है और नोटिस सही समय पर भेजा गया था।
  2. Affidavits: धारा 145 के तहत, व्यक्ति व्यक्तिगत साक्षात्कार के बजाय शपथ पत्र (Affidavit) के माध्यम से अपने बयान प्रस्तुत कर सकते हैं। शपथ पत्र को न्यायालय द्वारा स्वीकार किया जा सकता है, बशर्ते कि इसे सही तरीके से प्रस्तुत किया गया हो।
  3. Admissibility of Evidence: चेक बाउंस के मामलों में, संलग्न दस्तावेज़ और शपथ पत्र को साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जाता है, बशर्ते कि वे सही और सटीक हों। दस्तावेज़ों की प्रमाणिकता और उचितता की जांच की जाती है।

Cross-Examination Procedures:

1. Rights to Cross-Examination: चेक बाउंस के मामलों में, दोनों पक्षों को गवाहों की क्रॉस-एक्सामिनेशन (Cross-Examination) का अधिकार होता है। यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि गवाहों के बयानों की सच्चाई और सटीकता की जांच की जा सके।

2. Procedure:
  • Presentation of Evidence: गवाहों द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य और दस्तावेज़ों के आधार पर, प्रतिवादी पक्ष को गवाहों के बयान पर प्रश्न पूछने का अधिकार होता है।
  • Relevance: क्रॉस-एक्सामिनेशन में पूछे गए प्रश्नों का उद्देश्य यह साबित करना होता है कि गवाहों के बयान सही नहीं हैं या उनके बयान में कोई खामी है।

3. Judicial Oversight: न्यायालय क्रॉस-एक्सामिनेशन की प्रक्रिया पर निगरानी रखता है और यह सुनिश्चित करता है कि प्रश्न पूछने की प्रक्रिया न्यायिक मानदंडों के अनुसार हो। यदि क्रॉस-एक्सामिनेशन में अनुचित प्रश्न पूछे जाते हैं या प्रक्रिया का उल्लंघन होता है, तो न्यायालय उचित कार्रवाई कर सकता है।

Section 146: Presumption as to the Signature in NI Act in Hindi

 

धारा 146: चेक की प्रमाणीकरण (Section 146: Presumption as to the Signature)

Signature Verification:

धारा 146 भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत चेक की साइनैचर प्रमाणीकरण से संबंधित है। इस धारा के अंतर्गत, चेक के सिग्नेचर की प्रमाणिकता और वैधता के संबंध में निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं:

  1. Presumption of Authenticity: धारा 146 के अनुसार, जब कोई चेक अदालत में प्रस्तुत किया जाता है, तो यह मान्यता प्राप्त होती है कि चेक पर दिया गया सिग्नेचर सही है और प्रमाणिक है, जब तक कि इसके विपरीत कोई ठोस प्रमाण न दिया जाए। इसका मतलब है कि सिग्नेचर को वास्तविक और वैध माना जाता है, और इसका प्रमाण प्रस्तुत करने वाले के लिए यह मान लिया जाता है कि यह सही है।
  2. Burden of Proof: सिग्नेचर की प्रमाणीकरण का बोझ उस व्यक्ति पर होता है जो यह दावा करता है कि सिग्नेचर या दस्तावेज़ फर्जी या संदिग्ध है। यदि कोई व्यक्ति सिग्नेचर की वैधता को चुनौती देना चाहता है, तो उसे यह साबित करना होगा कि सिग्नेचर असत्य है या दस्तावेज़ में कोई अन्य धोखाधड़ी की गई है।

Impact on Legal Proceedings:

  1. Simplified Proceedings: धारा 146 के तहत सिग्नेचर की प्रमाणीकरण से कानूनी प्रक्रिया को सरल और त्वरित बनाया जाता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि सिग्नेचर की वैधता को चुनौती देने के लिए ठोस साक्ष्य प्रस्तुत करना आवश्यक है, जिससे कानूनी प्रक्रिया में अनावश्यक विवादों और विलंब को कम किया जा सके।
  2. Presumption in Favor of Holder: जब चेक धारक अदालत में चेक प्रस्तुत करता है, तो उसे यह मान्यता मिलती है कि सिग्नेचर वैध है। इससे धारक को अपने मामले को मजबूत करने में मदद मिलती है, और यह सुनिश्चित करता है कि विवादित मामलों में न्यायिक प्रक्रिया सुचारू रूप से चले।
  3. Defendant’s Challenge: यदि प्रतिवादी सिग्नेचर की वैधता को चुनौती देना चाहता है, तो उसे यह साबित करना होगा कि सिग्नेचर या चेक फर्जी है या उसमें कोई अन्य दोष है। यह चुनौती स्वीकार करने के लिए प्रतिवादी को ठोस साक्ष्य प्रस्तुत करने की आवश्यकता होती है।

Freqently Asked Questions (FAQs)

Q1: NI Act क्या है?

उत्तर: NI Act, या Negotiable Instruments Act, 1881, भारत में वित्तीय लेन-देन को नियंत्रित करने वाला एक कानूनी प्रावधान है, जो चेक, बिल ऑफ एक्सचेंज, और प्रमिसरी नोट्स से संबंधित नियम और कानूनों को निर्धारित करता है।

Q2: धारा 138 क्या है?

उत्तर: धारा 138 चेक बाउंस से संबंधित है। यह प्रावधान निर्धारित करता है कि यदि चेक के भुगतान के लिए खाते में पर्याप्त धन नहीं है और चेक बाउंस होता है, तो यह दंडनीय अपराध है।

Q3: धारा 143 का उद्देश्य क्या है?

उत्तर: धारा 143 चेक बाउंस के मामलों में एकतरफा (Summary) सुनवाई की प्रक्रिया को निर्दिष्ट करती है, जिससे मामलों का त्वरित निपटारा किया जा सके।

Q4: धारा 145 में क्या प्रावधान है?

Ans. उत्तर: धारा 145 के तहत, चेक बाउंस के मामलों में गवाहों द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य और शपथ पत्र को प्रमाणिक मान लिया जाता है, और गवाहों की क्रॉस-एक्सामिनेशन की प्रक्रिया को निर्दिष्ट किया जाता है।

Q5: धारा 146 के अनुसार, सिग्नेचर की प्रमाणीकरण कैसे होती है?

उत्तर: धारा 146 के तहत, जब चेक प्रस्तुत किया जाता है, तो चेक पर दिया गया सिग्नेचर प्रमाणिक और वैध माना जाता है, जब तक कि इसके विपरीत ठोस प्रमाण न प्रस्तुत किया जाए।

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