Pratyay in Hindi :

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Pratyay in Hindi प्रत्यय (Suffix) हिंदी व्याकरण का एक महत्वपूर्ण घटक है, जो शब्द निर्माण में अहम भूमिका निभाता है। प्रत्यय उस शब्दांश या अक्षर समूह को कहा जाता है जो किसी शब्द के अंत में जोड़कर नए शब्द की रचना करता है। प्रत्ययों की मदद से हम मूल शब्द के अर्थ, वर्ग और भाव को बदल सकते हैं। उदाहरण के लिए, ‘लिख’ शब्द में ‘ना’ प्रत्यय जोड़ने पर ‘लिखना’ क्रिया बन जाती है, जबकि ‘लिखा’ में ‘आ’ प्रत्यय जोड़ने से भूतकाल का संकेत मिलता है। इसी प्रकार, ‘बड़ा’ शब्द में ‘ई’ प्रत्यय जोड़कर ‘बड़ी’ विशेषण बनाया जा सकता है।

प्रत्ययों का उपयोग न केवल शब्दों के अर्थ और भाव को बदलने के लिए किया जाता है, बल्कि वे भाषा को अधिक समृद्ध और प्रभावशाली भी बनाते हैं। प्रत्ययों के माध्यम से एक ही मूल शब्द से विभिन्न अर्थों और रूपों के अनेक शब्द बनाए जा सकते हैं, जिससे भाषा में विविधता और अभिव्यक्ति की क्षमता बढ़ती है। हिंदी में मुख्यतः तीन प्रकार के प्रत्यय होते हैं: संज्ञा प्रत्यय, विशेषण प्रत्यय, और क्रिया प्रत्यय। ये प्रत्यय शब्दों की विभिन्न श्रेणियों में प्रयोग किए जाते हैं, जैसे कि क्रिया, विशेषण, संज्ञा आदि। इस प्रकार, प्रत्यय हिंदी व्याकरण का एक महत्वपूर्ण उपकरण है जो भाषा की संरचना और उसके उपयोग को व्यापक और प्रभावशाली बनाता है।

Pratyay In Hindi

What is Pratyay?

 

प्रत्यय क्या है? (What is Pratyay in Hindi?)

Pratyay in Hindi प्रत्यय (Suffix) एक ऐसा अक्षर समूह है जिसे किसी शब्द के अंत में जोड़कर नए शब्द की रचना की जाती है। यह मूल शब्द के अर्थ या व्याकरणिक रूप को बदलता है। प्रत्यय जोड़ने से शब्दों के भिन्न-भिन्न रूप उत्पन्न होते हैं जो भाषा को अधिक समृद्ध और विविधतापूर्ण बनाते हैं।

परिभाषा और महत्व (Definition and Importance)

परिभाषा: प्रत्यय उस अक्षर या अक्षर समूह को कहते हैं जो किसी शब्द के अंत में जोड़कर नया शब्द बनाता है, जिससे मूल शब्द का अर्थ या उसकी व्याकरणिक स्थिति बदल जाती है। उदाहरण के लिए, ‘पढ़’ शब्द में ‘ना’ प्रत्यय जोड़कर ‘पढ़ना’ शब्द बनता है, जिससे यह क्रिया का रूप ले लेता है।

महत्व:

  1. शब्द निर्माण: प्रत्ययों के माध्यम से नए शब्द बनाए जाते हैं, जो भाषा को विस्तृत और समृद्ध बनाते हैं।
  2. अर्थ विस्तार: प्रत्यय जोड़ने से मूल शब्द के अर्थ में विस्तार होता है, जिससे विभिन्न संदर्भों में एक ही शब्द का उपयोग किया जा सकता है।
  3. व्याकरणिक बदलाव: प्रत्यय जोड़कर शब्दों की व्याकरणिक स्थिति बदली जा सकती है, जैसे कि संज्ञा से विशेषण, विशेषण से क्रिया आदि।
  4. प्रभावी अभिव्यक्ति: प्रत्ययों का सही प्रयोग भाषा को अधिक प्रभावी और सटीक बनाता है, जिससे संप्रेषण का स्तर बढ़ता है।

प्रत्यय की पहचान (Identification of Pratyay)

प्रत्यय की पहचान करना सरल है यदि हम निम्नलिखित बिंदुओं को ध्यान में रखें:

  1. शब्द का अंत: प्रत्यय हमेशा शब्द के अंत में जुड़ता है। उदाहरण: ‘लिख’ + ‘ना’ = ‘लिखना’।
  2. अक्षर समूह: प्रत्यय एक अक्षर या अक्षर समूह हो सकता है जो शब्द का रूप बदल देता है। जैसे: ‘खेल’ + ‘ना’ = ‘खेलना’।
  3. शब्दार्थ पर प्रभाव: प्रत्यय जोड़ने से शब्द का अर्थ या व्याकरणिक स्थिति बदल जाती है। जैसे: ‘मित्र’ + ‘ता’ = ‘मित्रता’।
  4. संज्ञा, विशेषण, क्रिया में परिवर्तन: प्रत्ययों के माध्यम से संज्ञा, विशेषण और क्रिया आदि के रूपांतरण होते हैं। जैसे: ‘सुंदर’ + ‘ता’ = ‘सुंदरता’ (विशेषण से संज्ञा)।

Types of Pratyay in Hindi

 

प्रत्यय के प्रकार (Types of Pratyay in Hindi)

प्रत्यय मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं: कृत् प्रत्यय और तद्धित प्रत्यय। ये दोनों प्रत्यय मूल शब्द में जुड़कर नए शब्दों का निर्माण करते हैं, जिससे भाषा की विविधता और समृद्धि बढ़ती है।

कृत् प्रत्यय (Krit Pratyay)

परिभाषा: कृत् प्रत्यय वे प्रत्यय होते हैं जो क्रिया धातु में जुड़कर नए शब्द बनाते हैं। ये शब्द संज्ञा, विशेषण या अन्य रूपों में हो सकते हैं।

उदाहरण:

  1. करणीय (कर + णीय): “कर” धातु में “णी” प्रत्यय जोड़ने पर “करणीय” बनता है, जिसका अर्थ है “करने योग्य”।
  2. वाचक (वाच + क): “वाच” धातु में “क” प्रत्यय जोड़ने पर “वाचक” बनता है, जिसका अर्थ है “जो बोलता है”।
  3. गम्य (गम् + य): “गम्” धातु में “य” प्रत्यय जोड़ने पर “गम्य” बनता है, जिसका अर्थ है “जाने योग्य”।

महत्व:

  1. शब्द निर्माण: कृत् प्रत्यय नए शब्दों का निर्माण करते हैं जो विशेष धातुओं के अर्थ को विस्तारित करते हैं।
  2. व्याकरणिक बदलाव: ये प्रत्यय क्रिया को संज्ञा या विशेषण में परिवर्तित कर सकते हैं, जिससे वाक्य की संरचना में बदलाव आता है।

तद्धित प्रत्यय (Taddhit Pratyay)

परिभाषा: तद्धित प्रत्यय वे प्रत्यय होते हैं जो संज्ञा, विशेषण आदि शब्दों में जुड़कर नए शब्द बनाते हैं। ये प्रत्यय विशेष रूप से जाति, गुण, अव्यवस्था आदि के संदर्भ में प्रयुक्त होते हैं।

उदाहरण:

  1. राजकीय (राजा + इक): “राजा” शब्द में “इक” प्रत्यय जोड़ने पर “राजकीय” बनता है, जिसका अर्थ है “राजा से संबंधित”।
  2. पौत्र (पुत्र + त्र): “पुत्र” शब्द में “त्र” प्रत्यय जोड़ने पर “पौत्र” बनता है, जिसका अर्थ है “पुत्र का पुत्र”।
  3. मित्रता (मित्र + ता): “मित्र” शब्द में “ता” प्रत्यय जोड़ने पर “मित्रता” बनता है, जिसका अर्थ है “मित्र होने की अवस्था”।

महत्व:

  1. अर्थ विस्तार: तद्धित प्रत्यय जोड़ने से मूल शब्द के अर्थ में विस्तार होता है, जिससे वह अधिक विशेष और संदर्भित हो जाता है।
  2. भाषाई विविधता: ये प्रत्यय भाषा को अधिक विविध और अभिव्यक्तिपूर्ण बनाते हैं, जिससे संप्रेषण की क्षमता बढ़ती है।

Krit Pratyay in Hindi

 

कृत् प्रत्यय (Krit Pratyay in Hindi)

परिभाषा और उदाहरण (Definition and Examples)

परिभाषा: कृत् प्रत्यय वे प्रत्यय होते हैं जो क्रिया धातु में जोड़कर नए शब्द बनाते हैं। ये प्रत्यय मुख्यतः क्रिया को संज्ञा, विशेषण, या अन्य रूपों में परिवर्तित करते हैं, जिससे शब्द का अर्थ और उसका प्रयोग बदलता है।

उदाहरण:

  1. पढ़ाई (पढ़ + आई): “पढ़” धातु में “आई” प्रत्यय जोड़ने पर “पढ़ाई” शब्द बनता है, जिसका अर्थ है “पढ़ने की क्रिया”।
  2. चलित (चल + इत): “चल” धातु में “इत” प्रत्यय जोड़ने पर “चलित” बनता है, जिसका अर्थ है “जो चल रहा है”।
  3. दर्शनीय (दर्श + नीय): “दर्श” धातु में “नीय” प्रत्यय जोड़ने पर “दर्शनीय” बनता है, जिसका अर्थ है “देखने योग्य”।
  4. प्रेमिका (प्रेम + इका): “प्रेम” धातु में “इका” प्रत्यय जोड़ने पर “प्रेमिका” बनता है, जिसका अर्थ है “प्रेम करने वाली”।
  5. सहायक (सहाय + क): “सहाय” धातु में “क” प्रत्यय जोड़ने पर “सहायक” बनता है, जिसका अर्थ है “जो सहारा देता है”।
  6. आशिक (आशिक + इक): “आशिक” शब्द में “इक” प्रत्यय जोड़ने पर “आशिक” बनता है, जिसका अर्थ है “प्रेमी”।

शब्द निर्माण में भूमिका (Role in Word Formation)

  1. क्रिया से संज्ञा निर्माण: कृत् प्रत्यय क्रिया धातु को संज्ञा में बदलते हैं, जैसे ‘पढ़ना’ से ‘पढ़ाई’। इससे क्रिया के गुण और क्रियाविधि का संकेत मिलता है।
  2. विशेषण निर्माण: ये प्रत्यय क्रिया से विशेषण भी बनाते हैं, जैसे ‘चलना’ से ‘चलित’। इससे गुणात्मक विशेषण प्राप्त होते हैं।
  3. व्याकरणिक रूपांतरण: कृत् प्रत्यय शब्दों के व्याकरणिक रूप को बदलते हैं, जैसे ‘दर्शनीय’ (देखने योग्य) का निर्माण दर्शनीय विशेषण के रूप में होता है।
  4. नई अवधारणाओं का निर्माण: कृत् प्रत्यय से नए शब्द और अवधारणाएँ बनती हैं, जैसे ‘प्रेमिका’ से प्रेम करने वाली की अवधारणा प्रकट होती है।
  5. शब्द की अर्थवृद्धि: ये प्रत्यय शब्दों के अर्थ को विस्तारित करते हैं, जैसे ‘सहायक’ शब्द में ‘सहाय’ धातु के साथ ‘क’ जोड़कर सहारा देने वाली की नई परिभाषा मिलती है।
  6. भाषाई विविधता: कृत् प्रत्यय भाषा को विविध और समृद्ध बनाते हैं, जिससे एक ही धातु से विभिन्न प्रकार के शब्द उत्पन्न किए जा सकते हैं।

Taddhit Pratyay in Hindi

 

तद्धित प्रत्यय (Taddhit Pratyay in Hindi)

परिभाषा और उदाहरण (Definition and Examples)

परिभाषा: तद्धित प्रत्यय वे प्रत्यय होते हैं जो संज्ञा, विशेषण या अन्य शब्दों में जुड़कर नए शब्दों का निर्माण करते हैं। ये प्रत्यय मुख्य रूप से जाति, गुण, सम्बन्ध, या विशेषता को दर्शाने के लिए प्रयोग होते हैं।

उदाहरण:

  1. राजकीय (राजा + इक):
    • “राजा” शब्द में “इक” प्रत्यय जोड़ने पर “राजकीय” बनता है, जिसका अर्थ है “राजा से संबंधित”।
  2. पौत्र (पुत्र + त्र):
    • “पुत्र” शब्द में “त्र” प्रत्यय जोड़ने पर “पौत्र” बनता है, जिसका अर्थ है “पुत्र का पुत्र”।
  3. मित्रता (मित्र + ता):
    • “मित्र” शब्द में “ता” प्रत्यय जोड़ने पर “मित्रता” बनता है, जिसका अर्थ है “मित्र होने की अवस्था”।
  4. वाचक (वचन + क):
    • “वचन” शब्द में “क” प्रत्यय जोड़ने पर “वाचक” बनता है, जिसका अर्थ है “जो कहता है”।
  5. ग्रामीण (ग्राम + ईन):
    • “ग्राम” शब्द में “ईन” प्रत्यय जोड़ने पर “ग्रामीण” बनता है, जिसका अर्थ है “गाँव से संबंधित”।

शब्द निर्माण में भूमिका (Role in Word Formation)

1. अर्थ विस्तार (Meaning Expansion):

  • तद्धित प्रत्यय जोड़ने से मूल शब्द के अर्थ का विस्तार होता है और वह अधिक स्पष्ट और सटीक बन जाता है। उदाहरण के लिए, “ग्राम” से “ग्रामीण” बनने पर यह ग्राम से संबंधित किसी चीज़ को विशेष रूप से दर्शाता है।

2. सम्बन्ध और विशेषता (Relation and Attribute):

  • तद्धित प्रत्यय शब्दों में सम्बन्ध और विशेषता जोड़ने का काम करते हैं। जैसे “राजा” से “राजकीय” बनने पर यह राजा से सम्बंधित किसी वस्तु या विषय को दर्शाता है।

3. व्याकरणिक बदलाव (Grammatical Changes):

  • ये प्रत्यय मूल शब्द की व्याकरणिक स्थिति को बदलकर उसे संज्ञा, विशेषण या अन्य शब्द वर्ग में बदल सकते हैं। जैसे “मित्र” से “मित्रता” बनने पर यह मित्र होने की अवस्था को दर्शाता है।

4. भाषाई विविधता (Linguistic Diversity):

  • तद्धित प्रत्ययों का प्रयोग भाषा को अधिक विविध और समृद्ध बनाता है। ये प्रत्यय शब्दों में नए-नए रूप और अर्थ जोड़ते हैं, जिससे भाषा की अभिव्यक्ति क्षमता बढ़ती है।

Different Forms of Krit Pratyay in Hindi

 

कृत् प्रत्यय के विभिन्न रूप (Different Forms of Krit Pratyay in Hindi)

कृत् प्रत्यय मुख्य रूप से क्रिया धातु में जुड़कर नए शब्दों का निर्माण करते हैं। ये प्रत्यय विभिन्न रूपों में हो सकते हैं, जैसे संज्ञा से क्रिया, विशेषण से क्रिया आदि। आइए, कृत् प्रत्ययों के विभिन्न रूपों को विस्तार से समझें:

संज्ञा से क्रिया (Noun to Verb)

कृत् प्रत्यय संज्ञा शब्दों में जुड़कर उन्हें क्रिया में परिवर्तित करते हैं। इससे नए क्रियात्मक शब्द बनते हैं जो क्रिया का बोध कराते हैं।

उदाहरण:

  1. ज्ञान (संज्ञा) + कृत् प्रत्यय -> जानना (क्रिया)
    • “ज्ञान” (संज्ञा) में “ना” प्रत्यय जोड़ने पर “जानना” (क्रिया) बनता है, जिसका अर्थ है “ज्ञान प्राप्त करना”।
  2. शिक्षा (संज्ञा) + कृत् प्रत्यय -> शिक्षित करना (क्रिया)
    • “शिक्षा” (संज्ञा) में “इत” प्रत्यय जोड़ने पर “शिक्षित करना” (क्रिया) बनता है, जिसका अर्थ है “शिक्षा देना”।
  3. पाठ (संज्ञा) + कृत् प्रत्यय -> पढ़ना (क्रिया)
    • “पाठ” (संज्ञा) में “ना” प्रत्यय जोड़ने पर “पढ़ना” (क्रिया) बनता है, जिसका अर्थ है “पाठ करना”।

विशेषण से क्रिया (Adjective to Verb)

कृत् प्रत्यय विशेषण शब्दों में जुड़कर उन्हें क्रिया में परिवर्तित करते हैं। इससे नए क्रियात्मक शब्द बनते हैं जो विशेषण के भाव को क्रियात्मक रूप में व्यक्त करते हैं।

उदाहरण:

  1. सुंदर (विशेषण) + कृत् प्रत्यय -> सुंदराना (क्रिया)
    • “सुंदर” (विशेषण) में “आना” प्रत्यय जोड़ने पर “सुंदराना” (क्रिया) बनता है, जिसका अर्थ है “सुंदर बनाना”।
  2. मजबूत (विशेषण) + कृत् प्रत्यय -> मजबूत करना (क्रिया)
    • “मजबूत” (विशेषण) में “ना” प्रत्यय जोड़ने पर “मजबूत करना” (क्रिया) बनता है, जिसका अर्थ है “मजबूत बनाना”।
  3. धनी (विशेषण) + कृत् प्रत्यय -> धनी बनाना (क्रिया)
    • “धनी” (विशेषण) में “ना” प्रत्यय जोड़ने पर “धनी बनाना” (क्रिया) बनता है, जिसका अर्थ है “धनवान बनाना”।

शब्द निर्माण में भूमिका (Role in Word Formation)

कृत् प्रत्यय शब्द निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये प्रत्यय शब्दों को नए अर्थ और रूप प्रदान करते हैं, जिससे भाषा की विविधता और अभिव्यक्ति क्षमता बढ़ती है। संज्ञा और विशेषण शब्दों में कृत् प्रत्यय जोड़कर उन्हें क्रिया में परिवर्तित करना भाषा को अधिक समृद्ध और प्रभावी बनाता है। इससे हम विभिन्न संदर्भों में विभिन्न प्रकार के शब्दों का उपयोग कर सकते हैं, जिससे संप्रेषण का स्तर उच्च होता है।

Different Forms of Taddhit Pratyay in Hindi

 

तद्धित प्रत्यय के विभिन्न रूप (Different Forms of Taddhit Pratyay in Hindi)

तद्धित प्रत्यय संज्ञा शब्दों में जुड़कर नए शब्दों का निर्माण करते हैं, जो मूल शब्द की जाति, गुण, या संबंध को दर्शाते हैं। ये प्रत्यय विभिन्न रूपों में हो सकते हैं, जैसे संज्ञा से विशेषण और संज्ञा से संज्ञा। आइए, तद्धित प्रत्ययों के विभिन्न रूपों को विस्तार से समझें:

संज्ञा से विशेषण (Noun to Adjective)

तद्धित प्रत्यय संज्ञा शब्दों में जुड़कर उन्हें विशेषण में परिवर्तित करते हैं, जिससे संज्ञा के गुण या विशेषता को दर्शाया जा सके।

उदाहरण:

  1. राजा (संज्ञा) + इक प्रत्यय -> राजकीय (विशेषण)
    • “राजा” शब्द में “इक” प्रत्यय जोड़ने पर “राजकीय” बनता है, जिसका अर्थ है “राजा से संबंधित”।
  2. ग्राम (संज्ञा) + ईन प्रत्यय -> ग्रामीण (विशेषण)
    • “ग्राम” शब्द में “ईन” प्रत्यय जोड़ने पर “ग्रामीण” बनता है, जिसका अर्थ है “गाँव से संबंधित”।
  3. बाल (संज्ञा) + क प्रत्यय -> बालक (विशेषण)
    • “बाल” शब्द में “क” प्रत्यय जोड़ने पर “बालक” बनता है, जिसका अर्थ है “बच्चों से संबंधित”।
  4. विज्ञान (संज्ञा) + एक प्रत्यय -> वैज्ञानिक (विशेषण)
    • “विज्ञान” शब्द में “एक” प्रत्यय जोड़ने पर “वैज्ञानिक” बनता है, जिसका अर्थ है “विज्ञान से संबंधित”।

संज्ञा से संज्ञा (Noun to Noun)

तद्धित प्रत्यय संज्ञा शब्दों में जुड़कर नए संज्ञा शब्दों का निर्माण करते हैं, जिससे मूल शब्द के संबंध या वर्ग को दर्शाया जा सके।

उदाहरण:

  1. पुत्र (संज्ञा) + त्र प्रत्यय -> पौत्र (संज्ञा)
    • “पुत्र” शब्द में “त्र” प्रत्यय जोड़ने पर “पौत्र” बनता है, जिसका अर्थ है “पुत्र का पुत्र”।
  2. मित्र (संज्ञा) + ता प्रत्यय -> मित्रता (संज्ञा)
    • “मित्र” शब्द में “ता” प्रत्यय जोड़ने पर “मित्रता” बनता है, जिसका अर्थ है “मित्र होने की अवस्था”।
  3. कर्म (संज्ञा) + म प्रत्यय -> कर्मी (संज्ञा)
    • “कर्म” शब्द में “म” प्रत्यय जोड़ने पर “कर्मी” बनता है, जिसका अर्थ है “जो कर्म करता है”।
  4. धर्म (संज्ञा) + इक प्रत्यय -> धार्मिक (संज्ञा)
    • “धर्म” शब्द में “इक” प्रत्यय जोड़ने पर “धार्मिक” बनता है, जिसका अर्थ है “धर्म से संबंधित व्यक्ति”।

शब्द निर्माण में भूमिका (Role in Word Formation)

1. अर्थ विस्तार (Meaning Expansion):

  • तद्धित प्रत्यय जोड़ने से मूल शब्द के अर्थ का विस्तार होता है, जिससे वह अधिक विशेष और संदर्भित हो जाता है। उदाहरण के लिए, “राजा” से “राजकीय” बनने पर यह राजा से संबंधित किसी वस्तु या विषय को दर्शाता है।

2. संबंध और विशेषता (Relation and Attribute):

  • तद्धित प्रत्यय शब्दों में संबंध और विशेषता जोड़ने का काम करते हैं। जैसे “ग्राम” से “ग्रामीण” बनने पर यह ग्राम से संबंधित किसी व्यक्ति या चीज़ को विशेष रूप से दर्शाता है।

3. व्याकरणिक बदलाव (Grammatical Changes):

  • ये प्रत्यय मूल शब्द की व्याकरणिक स्थिति को बदलकर उसे संज्ञा, विशेषण या अन्य शब्द वर्ग में बदल सकते हैं। जैसे “पुत्र” से “पौत्र” बनने पर यह पुत्र के बेटे को दर्शाता है।

4. भाषाई विविधता (Linguistic Diversity):

  • तद्धित प्रत्ययों का प्रयोग भाषा को अधिक विविध और समृद्ध बनाता है। ये प्रत्यय शब्दों में नए-नए रूप और अर्थ जोड़ते हैं, जिससे भाषा की अभिव्यक्ति क्षमता बढ़ती है।

Major Krit Pratyay and Their Examples

 

प्रमुख कृत् प्रत्यय और उनके उदाहरण (Major Krit Pratyay and Their Examples)

कृत् प्रत्यय वे प्रत्यय होते हैं जो क्रिया धातु में जुड़कर नए शब्दों का निर्माण करते हैं। आइए, प्रमुख कृत् प्रत्ययों और उनके उदाहरणों को विस्तार से समझें:

1. त (Ta)

उदाहरण:

  1. कृत (कर + त)
    • “कर” धातु में “त” प्रत्यय जोड़ने पर “कृत” बनता है, जिसका अर्थ है “किया हुआ”।
  2. गृहीत (गृह + त)
    • “गृह” धातु में “त” प्रत्यय जोड़ने पर “गृहीत” बनता है, जिसका अर्थ है “ग्रहण किया हुआ”।
  3. पठित (पठ + त)
    • “पठ” धातु में “त” प्रत्यय जोड़ने पर “पठित” बनता है, जिसका अर्थ है “पढ़ा हुआ”।

2. ता (Ta)

उदाहरण:

  1. मित्रता (मित्र + ता)
    • “मित्र” धातु में “ता” प्रत्यय जोड़ने पर “मित्रता” बनता है, जिसका अर्थ है “मित्र होने की अवस्था”।
  2. विद्वत्ता (विद्वान + ता)
    • “विद्वान” धातु में “ता” प्रत्यय जोड़ने पर “विद्वत्ता” बनता है, जिसका अर्थ है “विद्वान होने की अवस्था”।
  3. सुंदरता (सुंदर + ता)
    • “सुंदर” धातु में “ता” प्रत्यय जोड़ने पर “सुंदरता” बनता है, जिसका अर्थ है “सुंदर होने की अवस्था”।

3. आन (Aan)

उदाहरण:

  1. पालन (पाल + आन)
    • “पाल” धातु में “आन” प्रत्यय जोड़ने पर “पालन” बनता है, जिसका अर्थ है “पालना”।
  2. रक्षण (रक्ष + आन)
    • “रक्ष” धातु में “आन” प्रत्यय जोड़ने पर “रक्षण” बनता है, जिसका अर्थ है “रक्षा करना”।
  3. शिक्षण (शिक्ष + आन)
    • “शिक्ष” धातु में “आन” प्रत्यय जोड़ने पर “शिक्षण” बनता है, जिसका अर्थ है “सिखाना”।

4. क (Ka)

उदाहरण:

  1. वाचक (वाच + क)
    • “वाच” धातु में “क” प्रत्यय जोड़ने पर “वाचक” बनता है, जिसका अर्थ है “जो बोलता है”।
  2. गायक (गाय + क)
    • “गाय” धातु में “क” प्रत्यय जोड़ने पर “गायक” बनता है, जिसका अर्थ है “जो गाता है”।
  3. लेखक (लिख + क)
    • “लिख” धातु में “क” प्रत्यय जोड़ने पर “लेखक” बनता है, जिसका अर्थ है “जो लिखता है”।

5. य (Ya)

उदाहरण:

  1. द्रष्टव्य (दृश + य)
    • “दृश” धातु में “य” प्रत्यय जोड़ने पर “द्रष्टव्य” बनता है, जिसका अर्थ है “देखने योग्य”।
  2. श्रव्य (श्रु + य)
    • “श्रु” धातु में “य” प्रत्यय जोड़ने पर “श्रव्य” बनता है, जिसका अर्थ है “सुनने योग्य”।
  3. पठनीय (पठ + य)
    • “पठ” धातु में “य” प्रत्यय जोड़ने पर “पठनीय” बनता है, जिसका अर्थ है “पढ़ने योग्य”।

Pratyay and Etymology of Words

 

प्रात्यय और शब्दों की व्युत्पत्ति (Pratyay and Etymology of Words)

1. शब्द निर्माण की प्रक्रिया (Process of Word Formation)

शब्द निर्माण की प्रक्रिया भाषा में नए शब्दों के निर्माण के लिए विभिन्न तत्वों का संयोजन होती है। यह प्रक्रिया प्रात्यय, उपसर्ग, और धातु के संयोजन के माध्यम से होती है।

  • धातु (Root): शब्द निर्माण की प्रक्रिया में पहला कदम धातु या मूल शब्द की पहचान करना है। यह वह आधार है जिस पर अन्य तत्व जोड़े जाते हैं। उदाहरण के लिए, “पढ़” (पढ़ना) एक धातु है।
  • प्रात्यय (Suffix): प्रात्यय मूल शब्द के अंत में जोड़कर नए शब्द का निर्माण करता है। जैसे “पढ़” धातु में “ना” जोड़कर “पढ़ना” बनता है।
  • उपसर्ग (Prefix): उपसर्ग मूल शब्द के शुरुआत में जोड़कर अर्थ में बदलाव करता है। जैसे “अ” उपसर्ग जोड़कर “असफल” (अ + सफल) बनता है।
  • संयोजन (Combination): धातु, प्रात्यय और उपसर्ग का संयोजन नए शब्दों का निर्माण करता है। उदाहरण के लिए, “राजा” (मूल) में “इक” प्रात्यय जोड़कर “राजकीय” (राजा + इक) बनता है।

2. प्रात्यय के उपयोग से नए शब्दों का निर्माण (Creation of New Words using Pratyay)

प्रात्यय शब्द निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये शब्दों के अर्थ को विस्तार और विविधता प्रदान करते हैं। प्रात्यय जोड़ने से नए शब्दों का निर्माण होता है, जो मूल शब्द के विशेष गुण, अवस्था, या संबंध को दर्शाते हैं।

  • कृत् प्रात्यय (Krit Pratyay): कृत् प्रात्यय धातु में जुड़कर नए क्रिया विशेषण या संज्ञा शब्द बनाते हैं। उदाहरण के लिए:

    • (पढ़ + त = पढ़ित) – पढ़ा हुआ
    • ता (सुंदर + ता = सुंदरता) – सुंदर होने की अवस्था
  • तद्धित प्रात्यय (Taddhit Pratyay): तद्धित प्रात्यय संज्ञा या विशेषण में जुड़कर नए संज्ञा या विशेषण शब्द बनाते हैं। उदाहरण के लिए:

    • इक (राजा + इक = राजकीय) – राजा से संबंधित
    • ईन (ग्राम + ईन = ग्रामीण) – गाँव से संबंधित

उदाहरण:

  1. गृहीत (गृह + त): यहाँ “गृह” धातु में “त” प्रात्यय जोड़ने पर “गृहीत” बना, जिसका अर्थ है “ग्रहण किया हुआ”।
  2. वाचक (वाच + क): यहाँ “वाच” धातु में “क” प्रात्यय जोड़ने पर “वाचक” बना, जिसका अर्थ है “जो बोलता है”।

निष्कर्ष

प्रात्यय शब्द निर्माण की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे मूल शब्द के अंत में जोड़कर नए अर्थ और रूप प्रदान करते हैं, जिससे भाषा की समृद्धि और विविधता बढ़ती है। शब्दों की व्युत्पत्ति और प्रात्यय का सही उपयोग भाषा को अधिक स्पष्ट और प्रभावशाली बनाता है।

Freqently Asked Questions (FAQs)

Q1: प्रात्यय क्या है?

Ans. प्रात्यय वह प्रत्यय होता है जो मूल शब्द में जोड़कर नए शब्द का निर्माण करता है। यह शब्द के अर्थ और रूप को बदलता है और शब्द की जाति, गुण या विशेषता को दर्शाता है।

Q2: प्रात्यय के कितने प्रकार होते हैं?

Ans. प्रात्यय मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं:

  • कृत् प्रात्यय: जो क्रिया धातु में जुड़कर नए शब्दों का निर्माण करते हैं (जैसे “पढ़ना” में “ना” प्रत्यय)।
  • तद्धित प्रात्यय: जो संज्ञा या विशेषण में जुड़कर नए शब्दों का निर्माण करते हैं (जैसे “मित्र” से “मित्रता”)।

Q3: प्रात्यय के प्रयोग का महत्व क्या है?

Ans. प्रात्यय शब्दों के अर्थ को विस्तार और स्पष्टता प्रदान करते हैं, नए शब्दों का निर्माण करते हैं और भाषा की विविधता को बढ़ाते हैं। ये व्याकरणिक बदलावों को सुगम बनाते हैं और संवाद को अधिक प्रभावशाली बनाते हैं।

Q4: प्रात्यय का उपयोग कैसे किया जाता है?

Ans. प्रात्यय का उपयोग शब्दों को बदलने, उनका अर्थ विस्तारित करने और नए शब्द निर्माण में किया जाता है। यह व्याकरण और शब्दावली में विविधता और समृद्धि लाता है।

Q5: क्या सभी भाषाओं में प्रात्यय होते हैं?

Ans. हां, प्रात्यय कई भाषाओं में होते हैं, हालांकि उनके स्वरूप और उपयोग में विभिन्नताएं हो सकती हैं। हिंदी में प्रात्यय का उपयोग विशेष रूप से शब्द निर्माण और अर्थ विस्तार के लिए किया जाता है।

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